कविता

यह एक टूटी फूटी सी कविता है।
कुछ शब्द जो हैं इसके,
वो सपनों से  हैं
टूटते झड़ते ।
इसके कुछ पत्ते,
लायी हैं तोडके झंझावातें,
किसी दूर देश से ।
ये दिशाहारा ,
रास्तों ने जिसको  बरगलाया है, 
राहों के कंकड़ पत्थर में,
ये अपने अस्तित्व  के शब्द खोजता ।
तंग पंक्तियों में  उलझा हुआ
ज़िन्दगी का तुक खोजता ।
कभी-कभी इन गलियों
के अंतहीन शोर में,
जाने पहचाने शब्दों का
सन्नाटा खोजता ।
भटक रहा है उस
एक किताब, उस एक  पन्ने ,
की तलाश में
जहां उसे पनाह मिले ।
ये टूटी हुई कविता ,
एक टूटा हुआ इंसान
ही तो है,
जो रात के अंधेरे में
अपने साए को खोजता है


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